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सनातन धर्म संस्कृति और ऋषि परंपरांओं का आगे बढ़ाना संत समाज का दायित्व-स्वामी अयोध्याचार्य

Bystaruknews

Sep 30, 2025

सनातन धर्म संस्कृति और ऋषि परंपरांओं का आगे बढ़ाना संत समाज का दायित्व
-स्वामी अयोध्याचार्य
हरिद्वार, 30 सितम्बर। जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी अयोध्याचार्य महाराज ने कहा कि सनातन धर्म संस्कृति और प्राचीन ऋषि परंपरांओं को आगे बढ़ाना संत समाज का दायित्व है। सप्तऋषि स्थित ए.एन.डी. पब्लिक स्कूल में नवरात्रों के अवसर पर आयोजित विशेष हवन यज्ञ के समापन पर संत समागम की अध्यक्षता करते हुए स्वामी अयोध्याचार्य महाराज ने कहा कि वैदिक संस्कृति में यज्ञ का विशेष महत्व है। यज्ञ करने से देवी देवता प्रसन्न होते हैं और यज्ञ की अग्नि से उठने वाला धुुंआ जहां-जहां आवरण बनाता है। उस क्षेत्र की समस्त नकारात्मकता समाप्त हो जाती है और समस्त मानवों में सकारात्मक विचारों का उदय होता है। जिससे शांति और सौहार्द का वातावरण बनता है और सभी के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। महंत रघुवीर दास एवं महंत ईश्वर दास ने कहा कि ऋषि परम्पराओं को आगे बढ़ाने के लिए स्वामी अयोध्याचार्य बधाई के पात्र हैं। प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा प्रतिपादित यज्ञ की परम्परा का पालन करते हुए किए गए यज्ञ के प्रभाव से अवश्य ही विश्व शांति और मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा। बाबा हठयोगी, महंत विष्णुदास एवं महंत दुर्गादास ने कहा कि संसार का कल्याण ही संतों का उद्देश्य है। गंगा तट पर संतों के सानिध्य में किए गए यज्ञ से निश्चित ही संसार का कल्याण होगा। महंत राजेंद्रदास, साध्वी वैष्णवी जयश्री एवं स्कूल की प्रिंसीपल साध्वी विजय लक्ष्मी ने सभी संत महापुरूषों का स्वागत किया। महंत राजेंद्रदास महाराज ने सभी संत महापुरूषों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ब्राह्मणों द्वारा ऋषि परंपरा के अनुसार वैदिक मंत्रोंच्चार के साथ किए गए यज्ञ का अवश्य ही सकारात्मक प्रभाव होगा।
इस अवसर पर स्वामी रविदेव शास्त्री, स्वामी निर्मल दास, महंत राजेंद्र दास, महंत विष्णुदास, महंत गोविंददास, महंत प्रेमदास, स्वामी शिवानन्द भारती, महंत गोविन्ददास, महंत राघवेंद्र दास, बाबा हठयोगी, महंत जसविन्दर सिंह, महंत निर्भय सिंह, स्वामी अनन्तानन्द, महंत जयराम दास, स्वामी शिवम महंत, महंत सूरज दास, स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि, स्वामी हरिहरांनद, स्वामी दिनेश दास, स्वामी प्रमोद दास, महंत प्रेमदास, भक्त दुर्गादास, महंत हरिदास, स्वामी ऋषिश्वरानन्द, स्वामी सुतीक्ष्ण मुनि, महंत प्रह्लाद दास, महंत दुर्गादास, सहित सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूष व श्रद्धालु भक्त उपस्थित रहे।

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