सेवा सप्ताह का पांचवा दिवस लिंग आधारित हिंसा को समाज से मुक्त करने और युवा सशक्तिकरण को समर्पित

सेवा सप्ताह का पांचवा दिवस लिंग आधारित हिंसा को समाज से समाप्त करने और युवा सशक्तिकरण को समर्पित किया गया। आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन में आयोजित मानस कथा के दिव्य मंच पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, केरल के राज्यपाल माननीय आरिफ मोहम्मद खान साहब, बांग्ला साहिब गुरुद्वारा से पूज्य रंजीत सिंह जी, ब्रह्मकुमारी से सिस्टर बिन्नी सरीन जी, विधि जी, कथाकार देवी चित्रलेखा जी, पद्म श्री शिवमणि जी, सूफी गायिका रूणा रिजविक जी, सरदास ब्रजमोहन सिंह जी और अनेक विशिष्ट अतिथियों ने सहभाग कर महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा को समाज से समाप्त करने, बाल विवाह के प्रति जागरूक करने के साथ युवा सशक्तिकरण हेतु अपने उद्बोधन दिये।
केरल के राज्यपाल माननीय आरिफ मोहम्मद खान साहब ने कहा कि समस्यायें हमारे जीवन का अंग है, परन्तु समस्याओं से निपटने में लिये हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर, ज्ञान और पूर्व के अनुभवों से शिक्षा लेनी चाहिये। भारत वह देश है जहां ज्ञान की पूजा होती है सरस्वती के रूप में, धन की पूजा होती है लक्ष्मी के रूप में और ऊर्जा की पूजा होती है शक्ति के रूप में और ये सब स्त्रीलिंग हैं परन्तु हमने पूजा के अर्थ का अनर्थ कर दिया है। पूजा से तात्पर्य है किसी चीज का महत्व जानना और महत्व समझने के बाद उसे आचरण में लाना है।
बेटी तो साक्षात ज्ञान की मूर्ति है इसलिये उन्हें शिक्षित करना नितांत आवश्यक है। हमारे जो संास्कृतिक आदर्श है; मूल्य है उसके अनुरूप हमारा आचरण होना चाहिये। उन्होंने कहा कि बिना महिलाओं के देश का सशक्तिकरण सम्भव नहीं है। जो समाज अपनी महिलाओं को कमजोर करके रखता है उसका कभी विकास नहीं हो सकता।

पहली पाठशाला माता की गोद होती है और माँ पहली शिक्षक भी है। शिक्षा के साथ संस्कार अत्यंत आवश्यक है इसके लिये गांधी के जीवन को पढ़ना होगा। गांधी जी के जीवन में उनकी माता से लेकर बा तक अन्य महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। गांधी जी के जीवन में सत्याग्रह बा से ही आया था।
उन्होंने कहा कि अकेले शिक्षा का महत्व नहीं है बल्कि संस्कारों का विशेष महत्व है। शिक्षा का सकारात्मक रूप तक निखर कर आता है जब उसके साथ संस्कार होते है। ज्ञान का तात्पर्य तथ्य एकत्र करना या साक्षरता से नहीं है बल्कि बहुधा के अन्दर एकात्मकता का सूत्र खोज लेना ही साक्षरता है। हर देह को ऐसे देखो की उस देह में मैं ही निवास कर रहा हूँ तो हदय में करूणा और प्रेम पैदा होता है। कर्म जो करूणा के भाव से पैदा होते है वही सच्चे कर्म है। किसी चीज को बार बार याद कर ही ज्ञान को सुरक्षित रखा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि प्रकृति ने पुरूष भी बनाया है और स्त्री को भी बनाया है। जिस तरह हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में 24 घन्टे में शरीर की स्वच्छता करनी होती है और यह जरूरी भी है, सफाई बहुत जरूरी है। पुरूष और स्त्री दोनों ही अपने शरीर की सफाई करते है परन्तु महिलाओं को प्रकृति ने अन्दर की स्वच्छता की शक्ति दी है, इसलिये महिलायें पुरूषों से अधिक स्वच्छ है।
हम यहां से इस चेतना के साथ जायेंगे कि नारी की प्रतिष्ठा जरूरी है। नारी के बिना हमारी उन्नति सम्भव नहीं है। जन साधारण और महिलाओं को शिक्षा दिये बिना किसी भी समाज की उन्नति सम्भव नहीं है। लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु से अपना उद्बोधन समाप्त किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत की संस्कृति, भाग्य और जो भविष्य है, उसका दर्शन आज इस दिव्य मानस कथा के मंच से स्पष्ट हो रहा है। स्वामी जी ने कहा कि श्रीरामचन्द्र जी की कथायें तो होती है परन्तु अब हर घट पर जानकी कथायें होनी चाहिये। नारी ही संस्कारों की क्यारी है। नारी न होती तो स्वामी विवेकानन्द जी, आदिगुरू शंकराचार्य जी, स्वामी निम्बकाचार्य जी जैसे संत न होते। यदि हम चाहते है कि इस देश को शंकराचार्य, विवेकानन्द और कलाम साहब मिले तो हमें संकल्प लेना है कि प्रभु हमारे घर में एक बेटी हो।
स्वामी जी ने कहा कि माँ के बचपन में दिये गये संस्कार हमेशा हमारे साथ रहते है। जिस शक्ति ने हमें जन्म दिया है कई बार कई घरों में उसका गला भी घोटने की कोशिश की जाती है इसलिये हमें राम कथा व रामायण की चौपाइयों में छुपे हुये जो संस्कार है उसे आत्मसात करना होगा क्योंकि श्रेष्ठ समाज से ही श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण होता है। रामकथा के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को समाज के पहरेदार और पैरोकार बनाना है। हमें संस्कारों और श्रेष्ठ विचारों को सम्मान देना है। शिक्षा हमें झुकने नहीं देती और संस्कार हमें गिरने नहीं देती। शक्ति है तो हम है। शक्ति न होती है हम न होते। हम सभी को मील की पत्थर बनाना होगा।
बांग्ला साहिब गुरुद्वारा से पूज्य रंजीत सिंह जी ने एक प्रसंग के माध्यम से बेटियों के सम्मान और भ्रूण हत्या के विषय में जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि हम अपनी बेटियों का सम्मान करें। हमारे यहां देवियों को पूजा जाता है। मां के चरणों में जन्नत होती है। उन्होंने कहा कि बेटी के चार रूप होते है, एक रूप में लाड़ली बेटी, प्रेम करने वाली बहन, आज्ञा मानने वाली पत्नी और ममत्व प्रदान करने वाली माँ है अतः हमें नारियों का सम्मान करना होगा इसका गुरूग्रंथ साहब में भी उल्लेख है।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि हम कीर्तन करते है तो सीताराम, राधाकृष्ण, लक्ष्मीनारायण, जय माँ गंगे, भारत माता की जय कहते हैं अर्थात हम शक्ति को मानने वाले लोग है। फिर भी 3 में से एक नारी अर्थात तीस प्रतिशत नारियां अपने ही घर में हिंसा का शिकार होती है। हमने इस भेदभाव को समाप्त करने के लिये जीवा और यूएनएफपीए दोनों साथ मिलकर एक टूलकिट का निर्माण कर रहे हैं । इसका ताप्तर्य है कि अगर हम मन्दिरों में शक्ति की पूजा करते है तो इसे घर में भी स्थापित करें ताकि घर और समाज स्तर पर नारियों का सम्मान हो। जिससे बाल विवाह न हो, महिलाओं और हमारी बेटियों को किसी भी प्रकार की हिंसा का सामना ना करना पड़े।
मानस कथा के मंच से सभी को नारी शक्ति के सम्मान का संकल्प कराया और सभी विशिष्ट अतिथियों को रूद्राक्ष का पौधा भेंटकर अभिनन्दन किया।