नोबल पुरस्कार के सम्मानित रवींद्रनाथ टैगोर जी की जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलिआज हमें ऐसी शिक्षा पद्धति की जरूरत है जो बच्चों को जानकारी के साथ नैतिकता और मानवता से जोड़ेंस्वामी चिदानन्दसरस्वती
प्रसिद्ध बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार, चित्रकार तथा भारतीय संस्कृति के पुरोधा श्री रवींद्रनाथ टैगोर जी को उनकी जयंती पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि रवींद्रनाथ जी ने बंगाली साहित्य एवं संगीत के साथ-साथ 19 वीं सदी के अंत एवं 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में भारतीय कला और साहित्य के पुनरुत्थान में अभूतपूर्व योगदान दिया।
रविंद्र नाथ टैगोर ने न केवल भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय बल्कि पश्चिमी देशों की संस्कृति की श्रेष्ठताओं को भी स्वीकार किया। वह दुनिया के एकमात्र अकेले ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनी-भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’।
नोबल पुरस्कार से सम्मानित श्री रवींद्रनाथ टैगोर जी की काव्यरचना गीतांजलि भारत के लिये एक वरदान है। उन्होंने भारत के लिये (जन गण मन) लिखकर सभी भारतीयों के दिलों में एक अमिट छाप छोड़ी है। वे हमेशा से ही मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्त्व देते थे। ‘मेरी शरणस्थली मानवता है’ यह उनका संदेश वर्तमान समय में इसकी ही सबसे अधिक आवश्यकता है। रविंद्र नाथ टैगोर ने जिस राष्ट्रवाद की कल्पना की थी उसके दो बुनियादी तत्व थे – पहला मानवता और दूसरा स्वतंत्रता। गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर जी ने कहा था कि “राष्ट्रभक्ति (देशभक्ति) हमारी आध्यात्मिक शरणस्थली नहीं हो सकती। मेरी शरणस्थली मानवता है। मैं हीरे के बदले में कांच नहीं खरीदूंगा। जब तक मैं जिंदा हूं तब तक मैं मानवता के ऊपर राष्ट्रभक्ति (देशभक्ति) को हावी नहीं होने दूंगा।”
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि श्री रवींद्रनाथ टैगोर जी ने शिक्षा पर बहुत ही श्रेष्ठ विचार व्यक्त किये हैं उनके अनुसार ‘‘शिक्षा छात्रों की संज्ञानात्मक अनभिज्ञता के रोग का उपचार करने वाले तकलीफदेह अस्पताल की तरह नहीं है, बल्कि यह उनके स्वास्थ्य की एक क्रिया है, उनके मस्तिष्क के चेतना की एक सहज अभिव्यक्ति है।’’ ’’श्रेष्ठतम शिक्षा वह है जो न केवल हमें जानकारी प्रदान करती है, अपितु सभी के अस्तित्व के साथ हमारे जीवन का सामंजस्य भी स्थापित करती है।’’ वास्तव में आज हमें ऐसी ही शिक्षा पद्धति की जरूरत है जो बच्चों को जानकारी के साथ नैतिकता और मानवता से जोड़ें, उनके हृदय में सहानुभूति, सेवा और बलिदान की भावना विकसित करे तथा सद्भाव, समरसता, शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण में सहयोग प्रदान करे। सभी को यह ध्यान रखना होगा कि जहाँ तक सम्भव हो हमारे द्वारा मानवता को हानि न पहुँचे। जब तक मानवता जिन्दा रहेगी यह धरा रहेगी।
आईये आज गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर जी की जयंती के पावन अवसर पर हम सभी की ओर से उन्हें शत शत नमन। वे एक महान सुधारक और कला प्रेमी थे। उनके अनुसार कला में व्यक्ति खुद को उजागर करता है, कलाकृति को नहीं। वे जीवन के अंतिम पड़ाव तक भी सामाजिक रूप से काफी सक्रिय थे और उन्होंने मानव जीवन के कई पहलुओं पर उत्कृष्ट साहित्य की रचना की। उनकी रचनाओं से जुडें, पढ़ें और अपने जीवन को गढ़े। आज की परमार्थ गंगा आरती टैगोर जी को समर्पित की।