भारत में सदियों से होली मनाने की परंपरा चली आ रही हर की मेल आई होली की पूजा करने भी जा रही है

हरिद्वार भारत में सदियों से होली मनाने की परंपरा चली आ रही है होली का त्यौहार गांव कस्बों शहरों के लिए पुरानी यादों को ताजा करने का माध्यम बन जाता है इसी तरह से शिव की ससुराल कनखल और ज्वालापुर भी होली की कई पुरानी यादें लिए हुए हैं मान्यता है कि जब भगवान शंकर की बारात कनखल आई थी तब कनखल में होली और दिवाली एक साथ में मनी थी पूरा कनखल दुल्हन की तरह सजाया गया था शिवजी की बारात में जहां ब्रह्मा विष्णु इंद्र सभी देवता ऋषि मुनि तपस्वी साधु संत योगी किन्नर भूत प्रेत पिशाच और सभी पशु पक्षियों ने भाग लिया था वही इस बारात में विश्वकर्मा भी पधारे थे और पूरी कनखल नगरी की साज-सज्जा बड़ी ही दिव्यता भव्यता के साथ उनके हाथों हुई थी सदी और सती और शिव की शादी के बाद जो यहां का माहौल था वह बहुत खुशनुमा था होली दिवाली एक साथ कनखल की सड़कों पर मनाई गई थी
सदियों से चली आ रही होली की परंपरा कनखल में इतनी दिव्य और भव्य थी कि कनखल में दक्षेश्वर महादेव मंदिर को जाने वाले मार्ग पर जिस चौराहे पर होली जलाई जाती थी उस चौराहे में होली कितने व्यापक स्तर पर जलाई और मनाई जाती थी कि इस मोहल्ले का नाम ही होली मोहल्ला रख दिया गया और पूरे पंचपुरी हरिद्वार में कनखल के होली मोहल्ले की होली बहुत प्रसिद्ध थी और यह परंपरा अब तक चली आ रही है यहां पर बसंत पंचमी के दिन होली का झंडा गाड़ा जाता है और पूरे क्षेत्र को रंग-बिरंगी झालरों से सजाया जाता है और होली के दिन होली जलाई जाती है
कनखल की रहने वाली श्रीमती अंजू गर्ग बताती है कि होलिका दहन से पूर्व महिलाएं गाय के गोबर की छोटे-छोटे उपलो मालाएं बनाकर होली को पहनाती है और गुलाल अबीर डाल कर दीप जलाकर अपने बच्चों के साथ होलिका की पूजा करती हैं कनखल निवासी श्रीमती रूपाली गुप्ता का कहना है कि होली के दिन होली दहन से पूर्व होलिका में आटे के बने मीठे पूड़े चढ़ाए जाते हैं शाम को होलिका दहन होता है अगले दिन होलिका दहन के बाद की राख लोग अपने घर ले जाते हैं और अपने बच्चों के और परिवारजनों के उस राख से टिका लगाते हैं जिससे बच्चों को नजर नहीं लगती। होली की यह परंपरा कनखल में सदियोंं से चली आ रही है