

भगवान श्री परशुराम राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी एवं संत समागम
दो दिवसीय संगोष्ठी-अवधूत मंडल आश्रम, राम नगर हरिद्वार
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अवधूत मंडल आश्रम में आयोजित भगवान परशुराम राष्ट्रीय शोध पर आधारित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में सहभाग किया। इस अवसर पर माननीय वरिष्ठ सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ श्री इन्द्रेश कुमार जी, स्वामी संतोषानन्द जी महाराज, स्वामी तुलसी जी महाराज, श्री नटवरलाल जोशी जी, न्यासी श्री रामजन्मभूमि न्यास, अयोध्या श्री कामेश्वर चैापाल जी, संस्थापक संरक्षक राÛ पÛ पÛ माननीय श्री सुनील भराला जी, वरिष्ठ अधिवक्ता श्री शिवप्रसाद मिश्र जी, वरिष्ठ समाजसेवी डा हरीश त्रिपाठी जी, उनके विश्वविद्यालय के कुलपति और अन्य विशिष्ट जन उपस्थित हुये।
इस संगोष्ठी में भगवान श्री परशुराम जी की समाज और राष्ट्र हेतु सांस्कृतिक देन, उनका समग्र व्यक्तित्व, कर्मभूमि और तपोभूमि की खोज, युगानुकुल प्रासंगिकता, अम्बा प्रसंग, वैदिक व पौराणिक आधार पर उनका जीवन दर्शन, वैदिक संस्कृति के अप्रतिम संरक्षक जैसे अनेक विषयों पर चितंन और मंथन किया जा रहा है।
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भगवान परशुराम शस्त्र और शास्त्र दोनों दृष्टि से महान थे। उनके पास अन्याय की समाप्त करने के लिये परसा था तो न्याय की स्थापना हेतु प्रभु श्री राम की दिव्य शक्तियां थी। वे एक हाथ में माला और दूसरे में भाला के मंत्र पर चलते थे। वास्तव में आज इसी की आवश्यकता है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत देश की माटी, थाती और छाती को प्रणाम करता हूं क्योंकि ये हमारी धरोहर है। हरिद्वार में 12 वर्ष और 6 वर्ष बाद कुम्भ होता है। यहां पर अमृत की कुछ बूंदे गिरीं और आज भी लाखों-लाखों श्रद्धालु यहां पर एक डूबकी और एक आचमन के लिये आते है। आज सागर मंथन की यात्रा स्वयं के मंथन की यात्रा बनें। इस देश में महाभारत हुआ लेकिन अब इस देश को महान भारत बनाने की जरूरत है इसलिये इस परशु को फिर से संस्कारित करने की जरूरत है। परशु दरारे बनाने के लिये नहीं दीवारों और दरारों को भरने के लिये हो। भ्रान्तियों को दूर करने के लिये हमारे कल्चर, नेचर और फ्यूचर की रक्षा जरूरी है। वाट्सअप ज्ञान से वैज्ञानिक ज्ञान की ओर बढ़े, भारतीय संस्कृति वाट्सअप ज्ञान पर आधारित नहीं है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारी संस्कृति और शास्त्रों पर चिंतन हो उसके लिये परमार्थ निकेतन हमेशा सभी के साथ है। उन्होंने कहा कि अभी हमारे पास संस्कारी सरकार है। अब हमें पर्यावरण के परशु की आवश्यकता है। पर्यावरण के परशु को लेकर आगे बढ़े। वैचारिक संस्कृति की रक्षा के लिये हमें परशुराम का परशु लाना होगा। पर्यावरण का मुद्दा धर्म का नहीं धरती का मुद्दा है। पानी नहीं होगा तो प्रयाग कैसा।
माननीय वरिष्ठ सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ श्री इन्द्रेश कुमार जी ने कहा कि हमारा देश सनातन था, सनातन है और सनातन रहेगा। भारत अपने ज्ञान, विज्ञान और परम्पराओं से श्रेष्ठ है। हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति से परिष्कृत है। सनातन संस्कृति में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। हम ही अपने शास्त्रों को माईथोलाॅजी कहेगे तो सत्य कैसे स्थापित कर सकते हैं। हमारी संस्कृति और शास्त्र फिलासफी है, जीवन दर्शन हैं तथा जीवन दर्शन रहेंगे। भगवान श्री राम और परशुराम जी का अवतार मानव अवतार है और ऊँ ईशवरीय शब्द है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने गोबर के गमले में लगा रूद्राक्ष का पौधा माननीय इन्द्रेश जी और अन्य विशिष्ट अतिथियों को भेंट किया।