परमार्थ निकेतन में एक माह से चल रही मानस कथा की आज हुई पूर्णाहूति* अनेक संकल्पों और उद्घोषणाओं के साथ मानस कथा का समापन

आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के पावन गंगा तट पर मानस कथाकार संत श्री मुरलीधर जी के श्रीमुख से हो रही मासिक मानस कथा की आज पूर्णाहूति हुई। मासिक मानस कथा और पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के 70 वें अवतरण दिवस के पावन अवसर पर आयोजित सेवा सप्ताह महोत्सव बना सेवा पखवाड़ा।
मानस कथा के दिव्य मंच से अनेक संकल्प लिये गये तथा जन जागरूकता हेतु कई उद्घोषणायें भी की गयी। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने मानस कथा की पूर्णाहूति के अवसर पर कहा कि यह कथा कि पूर्णाहुति नहीं बल्कि संकल्पों का शुभारम्भ है। हम सभी ने विगत एक माह से मानस की दिव्य कथा के साथ सेवा महोत्सव के माध्यम से सेवा का महत्व और अनेक पूज्य संतों और महापुरूषों के विचारों को श्रवण किया। अब उस पर मनन और अमल करने का समय आ गया है।
स्वामी जी ने कहा कि पुत्र को जन्म देने की प्रबल इच्छा, दहेज की प्रथा और उत्तराधिकारी की लालसा के कारण कन्या भ्रूणहत्या बढ़ती जा रही है। साथ ही भारत में हर वर्ष 18 साल से कम आयु की कम से कम 5 मिलियन लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है जो भारत को विश्व में सर्वाधिक बाल वधुओं वाला देश बनाता है। बाल वधुओं की कुल वैश्विक संख्या का एक तिहाई भारत में मौजूद है। वर्तमान में देश की 15-19 आयु वर्ग की लगभग 16 प्रतिशत किशोरियों का विवाह हो चुका है। बालिकाएँ समय से पूर्व स्कूल छोड़ देती हैं और घरेलू कार्यों में लग जाती हैं। ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमन’ के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल छोड़ने के बाद बालिकाओं के विवाह की संभावना चार गुना अधिक होती है।
बेटियों को जन्म देना और यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि बेटियां स्कूल जाये और अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी करें इसके लिये पहले शिक्षा फिर शादी का मंत्र याद रखना होगा। साथ ही बेटियों की सुरक्षा की और उनके स्वास्थ्य एवं पोषण को भी प्राथमिकता दिया जाना भी अत्यंत आवश्यक है। इसके लिये हमें अपनी प्रार्थना और आशीर्वाद में भी ‘‘पुत्रीवती भव’’ का भी चलन समाज में शुरू करना होगा तथा पुत्रीवती भव का आशीष देना होगा तभी सामाजिक चेतना में भी परिवर्तन आ सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने मानस कथा के मंच से कन्या भ्रूण हत्या रोकने का आह्वान करते हुये कहा कि बेटियों को दहेज में दिया जाने वाला धन उनकी शिक्षा पर खर्च किया जाये जिससे बेटी पढ़ेगी, बेटी आगे बढ़ेगी तथा बेटियां बचेेंगी।