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स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रद्धाजंलि समारोह में किया सहभागचेतन ज्योति आश्रम, भूपतवाला हरिद्वार में आयोजित श्रद्धाजंलि समारोह में भारत साधु समाज के. महासचिव महान विभूति श्री हरिनारायणानन्द जी महाराज और पूज्य स्वामी वागीश्वरानन्द जी महाराज को भावभीनी श्रद्धांजलि* 

Bystaruknews

Apr 25, 2022

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रद्धाजंलि समारोह में किया सहभागचेतन ज्योति आश्रम, भूपतवाला हरिद्वार में आयोजित श्रद्धाजंलि समारोह में भारत साधु समाज के. महासचिव महान विभूति श्री हरिनारायणानन्द जी महाराज और पूज्य स्वामी वागीश्वरानन्द जी महाराज को भावभीनी श्रद्धांजलि* 

  परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्री चेतन ज्योति आश्रम, भूपतवाला हरिद्वार में आयोजित श्रद्धाजंलि समारोह में भारत साधु समाज के सचिव महान विभूति श्री हरिनारायणानन्द जी महाराज और पूज्य स्वामी वागीश्वरानन्द जी महाराज को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

गुरूजनों की पावन स्मृति में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि अभूतपूर्व संत हमारे श्री हरिनारायणानन्द जी महाराज जिनका जीवन ही निर्माण की यात्रा को समर्पित था। वे हर पल समाज के लिये सोचते थे। वैसे तो निर्माण से निर्वाण की यात्रा होती है परन्तु अब तो लगता है कि निर्वाण से निर्माण की यात्रा की भी आवश्यकता है। निर्लिप्त रहते हुये निर्माण की यात्रा हो। निर्माण केवल भवनों का नहीं बल्कि भावनाओं का हो, बुद्धि का विस्तार नहीं बल्कि शुद्धि का विस्तार भी हो, केवल इंफ्रास्ट्रक्चर  ही नहीं बल्कि इंट्रास्ट्रक्चर भी हो ताकि भीतरी निर्माण हो, भीतर से अपना निर्माण किया जा सके। भीतर की यात्रा ही निर्माण की यात्रा हो।

स्वामी जी ने कहा कि जीवन में एक ओर साधना का बल है और दूसरा साधनों का बल है। साधनों के बल से भवन खड़े किये जा सकते हैं और साधना के बल पर इंट्रास्ट्रक्चर मजबूत होता है और सच तो यह है कि स्वयं को साधना ही सच्ची साधना है इसलिये साधनों के साथ-साथ साधना बनी रहे यह बहुत जरूरी है। ध्यान रखे कि भव्यता के साथ दिव्यता भी बनी रहे इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है। आज के इस युग में साधनों के साथ साधना और भव्यता के साथ दिव्यता बहुत आवश्यक है।

स्वामी जी ने कहा कि आश्रमों और मन्दिरों के पास जो सम्पत्ति है उसे सम्पत्ति न समझें बल्कि उसे संस्कृति समझें । संस्कृति बचेगी तो सम्पत्ति का भी मूल्य होगा अन्यथा संस्कृति के अभाव में सम्पत्ति न तो सम्मति ला पायेगी न ही समृद्धि इसलिये संस्कृति का संरक्षण करें। हमारी सारी सम्पत्ति संस्कृति के संरक्षण के लिये हो। जिस दिन सम्पत्ति को संस्कृति की तरह देखा जायेगा उस दिन संस्कृति की सेवा होगी और न कोई विवाद होंगे और न ही अधिग्रहण होगा क्योंकि संस्कृति संवाद कायम करती है और कई बार केवल सम्पत्ति विवाद के स्तर पर ले जाती है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने उपस्थित सभी पूज्य संतों से कहा कि स्वामी श्री हरिनारायणानन्द जी महाराज के दिव्य कार्यों को आगे बढ़ाते रहे यही उनके लिये सच्ची श्रद्धाजंलि होगी। साथ ही संस्कृति के साथ-साथ प्रकृति का संरक्षण भी बहुत जरूरी है इसलिये ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगायें, जल का संरक्षण करें, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करें।

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