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धर्म, अध्यात्म और शिक्षा का प्रमुख केंद्र है निर्धन निकेतन आश्रम-स्वामी भगवत स्वरूप

Bystaruknews

Jul 20, 2024

धर्म, अध्यात्म और शिक्षा का प्रमुख केंद्र है निर्धन निकेतन आश्रम-स्वामी भगवत स्वरूप
हरिद्वार, 20 जुलाई। खड़खड़ी स्थित निर्धन निकेतन आश्रम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के समापन पर आयोजित संत सम्मेलन में संत महापुरूषों ने श्रद्धालु भक्तों को आशीर्वचन प्रदान करते हुए धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर चलने का आह्वान किया। आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी ऋषि रामकृष्ण महाराज के संयोजन में आयोजित संत सम्मेलन में शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए डा.दिनेशचंद शास्त्री एवं धर्म क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए महंत मोहन सिंह को सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए स्वामी भगवत स्वरूप महाराज ने कहा कि हरिद्वार धर्म और अध्यात्म की नगरी है। संतों द्वारा प्रसारित अध्यात्मिक संदेशों से पूरी दुनिया को मार्गदर्शन प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि स्वामी ऋषि रामकृष्ण महाराज के नेतृत्व में निर्धन निकेतन आश्रम धर्म, अध्यात्म और शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में सनातन धर्म संस्कृति के प्रचार प्रसार में अहम योगदान कर रहा है। महामंडलेश्वर स्वामी शिवानंद महाराज एवं महंत गोविंददास महाराज ने कहा कि देश को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से एकजुट करने में संत महापुरूषों ने हमेशा अग्रणी भूमिका निभायी है। उन्होंने कहा कि स्वामी ऋषि रामकृष्ण महाराज जिस प्रकार आश्रम के सेवा प्रकल्पों को आगे बढ़ा रहे हैं। वह सभी के लिए लिए अनुकरणीय है। स्वामी ऋषि रामकृष्ण महाराज ने सभी संत महापुरूषों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि गुरूजनों से प्राप्त ज्ञान और शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए आश्रम को सेवा और शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाना ही उनका लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि वे सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें हमेशा गुरूजनों की विशेष कृपा प्राप्त हुई है। कार्यक्रम का संचालन स्वामी हरिहरानंद ने किया। इस अवसर पर महंत राघवेंद्र दास, महंत गोविंददास, महंत जगजीत सिंह, महंत तीरथ सिंह, महंत मोहन सिंह, स्वामी प्रबोधानंद गिरी, स्वामी दिनेश दास, स्वामी हरिवल्लभदास शास्त्री, स्वामी शिवानंद, स्वामी हरिहरानंद, महंत सूरजदास, स्वामी ज्ञानानंद, स्वामी शिवानंद भारती, पूर्व पार्षद महावीर वशिष्ठ, स्वामी शिवम गिरी सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्त मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन स्वामी हरिहरानंद ने किया।

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