

सावन में शिवलिंग पर जल चढ़ाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित साध्वी अनन्या सरस्वती



सावन में शिवलिंग पर जल चढ़ाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. सावन चलने वाली शिव आराधना निरंतर जारी है। सावन के महीने में परमार्थ आश्रम में स्थित शिव मंदिर में आयोजित साध्वी. अनन्या सरस्वती लगातार सावन माह एक माह तक शिव के अभिषेक के दौरान कहां कि कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान विष निकला था, जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया था। इस विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने उन पर जल चढ़ाना शुरू कर दिया।
एक बार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इस मंथन से हलाहल विष निकला, जो इतना जहरीला था कि उसने पूरे संसार को संकट में डाल दिया। सभी देवता और असुर इससे भयभीत हो गए और भगवान शिव से इस विष से बचने की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया। इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए, देवताओं ने उन पर जल चढ़ाना शुरू कर दिया। यह जल भगवान शिव के शरीर को शीतलता प्रदान करता था और विष के प्रभाव को कम करता था
महत्व:सावन के महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भगवान शिव को शीतलता मिलती है और विष के प्रभाव से मुक्ति मिलती है। यह भी माना जाता है कि शिवलिंग पर जल चढ़ाने से रोगों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि आती है।