सनातन धर्म भारत की अद्भूत पहचान है-स्वामी अयोध्याचार्य
हरिद्वार, 22 मई। श्री नृसिंह धाम के परमाध्यक्ष जगद्गुरू स्वामी अयोध्याचार्य महाराज ने कहा कि सनातन धर्म सबसे प्राचीन और भारत की अद्भूत पहचान है। अयोध्या प्रत्येक सनातनी की आस्था का केंद्र है। पांच सौ वर्ष के संघर्ष के बाद अयोध्या में निर्मित हुआ भव्य श्रीराम मंदिर पूरे विश्व को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करेगा। नरसिंह जयंती के उपलक्ष्य में सप्तऋषि क्षेत्र स्थित एएनडी पब्लिक स्कूल में आयोजित संत सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संतों का दायित्व है कि धर्म प्रचार के साथ समाज को कुरीतियों के प्रति जागरूक भी करें।
महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरी महारज ने कहा कि सद्गुरू के सानिध्य में ही भक्त का कल्याण होता है। माता पिता और गुरू की शिक्षाओं का अनुसरण कर जीवन में कोई भी उच्च मुकाम पाया जा सकता है। इसलिए सभी को अपने माता पिता और गुरू की आज्ञा का पालन और उनका सदैव आदर करना चाहिए।
महंत बालकदास महाराज ने कहा कि संतों का संसार में अपना कुछ नहीं होता है। परमार्थ ही संतों के जीवन का उद्देश्य है। उत्तराखण्ड देवभूमि और संतों की तपस्थली है। उत्तराखण्ड के संतों के श्रीमुख से प्रसारित होने वाले आध्यात्मिक संदेशों से पूरे विश्व को मार्गदर्शन मिलता है।
श्रीमहंत विष्णुदास महाराज ने कहा कि संत समाज के प्रेरणा स्रोत जगद्गुरू स्वामी अयोध्याचार्य महाराज समाज में धर्म जागरण करने के साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं। सभी को उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए मानव कल्याण में योगदान करना चाहिए। महंत राजेंद्रदास महाराज जिस प्रकार अपने गुरू स्वामी अयोध्याचार्य महाराज के मार्गदर्शन में सनातन धर्म संस्कृति के प्रचार प्रसार के साथ नृरसिंह धाम आश्रम की सेवा संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं। उससे युवा संतों को प्रेरणा लेनी चाहिए।
महंत राजेंद्रदास महाराज, स्कूल की प्रधानाचार्य साध्वी विजय लक्ष्मी, साध्वी वैष्णवी जया श्री ने सभी संत महापुरूषों का फूलमाला पहनाकर स्वगात किया और आभार व्यक्त किया। महंत राजेंद्रदास महाराज ने कहा कि भक्तों को ज्ञान की प्रेरणा देकर अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर करना ही संतों के जीवन का उद्देश्य है। संत महापुरूषों का आशीर्वाद ईश्वर के आशीर्वाद के समान है।
इस अवसर पर श्रीमहंत विष्णुदास, श्रीमहंत रघुवीर दास, महंत बालकदास, महंत दुर्गादास, महंत राघवेंद्र दास, महंत गोविंददास, महंत ईश्वर दास, बाबा हठयोगी, महंत प्रेमदास, महंत प्रमोद दास, स्वामी रविदेव शास्त्री, स्वामी दिनेश दास, महंत हरिदास, महंत जयराम दास, महंत सूरज दास, महंत नारायण दास पटवारी सहित सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूष मौजूद रहे।